palynology in hindi : पलीनोलॉजी में पराग कणों का अध्ययन किया जाता है। पलीनोलॉजी वनस्पति विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पराग कणों का अध्ययन किया जाता है। पराग कणों के अध्ययन को ही palynology कहते हैं।
परागकण क्या है ? ये कहाँ पाये जाते हैं ?
परिभाषा: पुष्प के पराग कोष से पराग कणों के वर्तिकाग्र तक पहुंचाने की प्रक्रिया को परागकण कहते हैं।
परिभाषा: परागकण की प्रक्रिया में एक पुष्प के परागकण किसी दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुंचते हैं इस क्रिया को ही परागकण कहते हैं।
परिभाषा: पराग कोष से मुक्त हुए परागकण विभिन्न माध्यम द्वारा वर्तिकाग्र की सतह पर पहुंचने की क्रिया को ही परागकण कहते हैं।
परागण किसे कहते हैं उदाहरण सहित बताएं
परिभाषा: पुष्प के नर भाग ( पुंकेसर ) से निकले पराग कण जब किसी माध्यम कि सहायता से मादा के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं तो इस क्रिया को परागकण कहते हैं ।
परागकण पुष्प के नर भाग में पाए जाते हैं और यह मादा के वर्तिकाग्र तक पहुंचते हैं।
परागकण पुष्प के किस अंग के भीतर निर्मित होते हैं
परागकण पुष्प के पराग कोष अंग के भीतर निर्मित होते हैं। पुष्प के अंदर जो पराग कोष होता है उसी के अंदर परागकण का निर्माण होता है। परागकोष पुष्प के नर जनन अंग पुंकेसर का एक भाग है। पुष्प के नर जनन अंग एंजियोस्पर्म का एक भाग होता है पराग कोष ।
विभिन्न प्रकार के परागकण का उल्लेख कीजिए।
परागण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है स्व परागण और पर परागण ।
- स्व परागण
- पर परागण
स्व परागण किसे कहते हैं ? Swaparagan kise kahate hain
उत्तर: स्व परागण की परिभाषा – स्वपरागण में किसी पौधे के पुष्प के परागण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुंचते हैं या फिर किसी पुष्प के परागण दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुंचते हैं इस प्रकार के परागण को स्व परागण कहते हैं ।
स्व परागण मुख्य रूप से तिन प्रकार का होता है । स्वयुगमन और सजात पुष्पी परागण और उन्मिल परागण है।
A. स्वयुगमन परागण : स्वपरागण किसी एक ही पुष्प के अंदर होता है। यानी कि किसी पुष्प के परागकण निकलकर उसी पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुंचते हैं इस प्रकार के परागण को स्वयुग्मन परागण कहते हैं। स्वयुगमन में परागकण और वर्तिकाग्र एक दूसरे के पास पास होने चाहिए।
उन्मिल परागणी : ऐसे पुष्प जो की खुलते हैं और बंद होते हैं इस प्रकार के पौधों के परागण को उन्मिल परागणी है। उन्मिल परागणी बहुत ही दुर्लभ होता है । वायोला या कोमोलिना उन्मिल परागणी का उदाहरण है । इस प्रकार के पुष्प में स्वयुग्मन क्षीण होता है।
अनुन्मिलय परागण : इस प्रकार के परागण में परागण और वर्तिकाग्र कभी भी नहीं खुलते हैं इस प्रकार के परागण को अनुन्मिलय परागण कहते हैं। अनुन्मिलय परागण में स्वयुगमन होता है।
सजात पुष्पी परागण : सजात पुष्पी परागण में एक ही पादप के पुष्प के परागण इस पादप के दूसरे उसके वर्तिकाग्र तक जाते हैं । इस प्रकार के परागण को सजात पुष्पी परागण कहते हैं।
पर परागण किसे कहते हैं? Per paraagan kise kahate hain
पर परागण की परिभाषा: पर परागण में एक पादप के पुष्प के परागकण दूसरे पादप के वर्तिकाग्र तक पहुंचते हैं । इस प्रकार के परागण को पर परागण कहते हैं। पर परागण भिन्न भिन्न प्रकार के माध्यम से होता है। पर परागण विभिन्न प्रकार के कारकों पर निर्भर करता है।
पर-परागण के प्रकार per paraagan ki prakar
पर-परागण के प्रकार : पर परागण अलग-अलग प्रकार से होता है । पर परागण के कई सारे उदाहरण है । यहां पर पर परागण को विस्तार से समझाया गया है। किस प्रकार से जीव जंतु पर परागण में सहायक होते हैं। पर परागण के सभी माध्यमों का वर्णन यहां पर किया गया है ।
वायु के द्वारा पर परागण : बहुत सारे पौधे ऐसे होते हैं जिनमें वायु के द्वारा पर परागण होता है इस प्रकार के परागण में परागकण वायु के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचते हैं। वायु के द्वारा पर परागण मक्का और गेंहू में होता है। गेहूं, मक्का, धान और बाजरा वायु द्वारा होने वाले पर परागण के उदाहरण है । परागकण वायु में धूल की भांति उड़कर के वर्तिकाग्र तक पहुंचते हैं। किस प्रकार के परागकण प्रायः छोटे और कम आकर्षक वाले होते हैं ।
जन्तु परागण : जंतु परागण विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं और पशु पक्षियों के माध्यम से होता है। गिलहरी और चमगादड़ जंतु परागण के उदाहरण है। जंतु परगना मुख्य रूप से चार प्रकार का होता है ।
- कीट परागण
- पक्षी परागण
- जंतु परागण
- चमगादड़ परागण
- गिलहरी परागण
कीट परागण : विभिन्न प्रकार के कीटों के माध्यम से होने वाले परागण को कीट परागण कहते हैं। मंजरी , मुंडक कीट परागण का उदाहरण है ।
पक्षी परागण : पक्षी के द्वारा होने वाले परागण को पक्षी परागण कहते हैं । हमिंगबर्ड, मकड़ी शिकारी, सनबर्ड, हनीक्रीपर्स और हनीईटर पक्षी परागण के उदाहरण है ।
जंतु परागण : जंतु परगना विभिन्न प्रकार के जंतुओं के माध्यम से होता है । गिलहरी और चमगादड़ जंतु परागण का ही उदाहरण है।
गिलहरी परागण : गिलहरी परागण में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गिलहरी बहुत सारे फलों के बीजों को और फलों को इकट्ठा करती है । इकट्ठा करने के लिए वह फलों के बीजों को जमीन में गाड़ देती है। समय आने पर वह फलों के बीच अंकुरित हो जाते हैं । इस प्रकार से गिलहरी परागण में सहायक होती है।
जल परागण : बहुत सारे पौधों के फूल अपने नर जननांगों को पानी के अंदर छोड़ देते हैं और फिर वह नर जननांग पानी के माध्यम से मादा जननांग यानी की वर्तिकाग्र तक पहुंच जाते हैं इस प्रकार से जल भी परागण का एक माध्यम है।